भगवान विष्णु के दसावतार की कथा हिंदी में- Dasawatar Ki Katha In Hindi

AuthorSmita Mahto last updated Sep 27, 2023

दशावतार

जब-जब पृथ्वी पर पाप का बोझ बढ़ाता है तब-तब भगवान शिव और भगवान विष्णु पृथ्वी पर अवतरित होते है, और पृथ्वी को पापों के बोझ से मुक्त करते है। इस प्रकार भगवान विष्णु के 10 अवतारो में एक होनी बांकी है, जो की कलयुग के अंत में होगी।

Dasawatar इस प्रकार है...

  • मत्स्य अवतार
  • कूर्म अवतार
  • वराह अवतार
  • नरसिंह अवतार
  • वामन अवतार
  • परशुराम अवतार
  • श्री राम अवतार
  • श्री कृष्ण अवतार
  • बुद्ध अवतार
  • कल्कि अवतार

मत्स्य अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार भगवान विष्णु ने सृस्टि को प्रलय से बचने के लिए मतस्य अवतार लिए।

इसकी कथा कुछ इस प्रकार है।

कृतयुग में सत्यब्रत नामक राजा हुए। वे बहुत प्रतापी थे। एक दिन वह स्नान करने नदी गए, स्नान करके जलांजलि दे रहे थे अचानक उनकी ओंजळी में छोटी सी मछली आ गयी। वे सोचे की इसे समुद्र में डाल दिया जाए। लेकिन मछली ने उनसे प्रार्थना की कि उसे समुद्र में न छोड़ा जाये अन्यथा बड़ी मछलिया उसे खा जाएँगी। तब राजा ने उस मछली को अपने कमंडल में डाल दिया।

थोड़ी देर बाद देखा तो उस मछली का आकर साधारण मछली के आकर से ज्यादा हो रहा था। तब वे समझ गए की यह मछली असाधारण है। तब राजा की प्रार्थना सुनकर उन्हें वह मछली अपने असली रूप में दर्शन दिए और कहा, हे राजन मेरा यह मत्स्य अवतार पृथ्वी को बचने के लिया हुआ है। आज से सात दिन बाद प्रलय आएगा, उस समय तुम संत-महात्माओ, बृक्ष, औसधि, पशु-पक्षी तथा मनुस्य इत्यादि को लेकर नदी के निकट आ जाना। वहा मेरे मन के द्वारा उत्पन्न एक नाव तुम देखोगे। उस नाव पर सभी को लेकर बैठ जाना, और वासुकि नाग के द्वारा उस नाव को मेरे सिंह से बाँध देना, जिससे मैं तुम सभी की रक्षा कर सकूंगा।

उस समय प्रश्न पूछने पर मैं तुम्हे उत्तर दूंगा, जिससे मेरी महिमा जो परम्ब्रह्मा नाम से विख्यात है , तुम्हारी ह्रदय में प्रकट हो जाएगी। तब समय आने पर मत्स्य रूपधारी भगवान् विष्णु ने राजा को तत्वज्ञान का उपदेस दिया, जो मात्सय पुराण नाम से प्रसिद्द है।

कूर्म अवतार - Dasawatar

ग्रंथों के अनुसार कूर्म (कछुआ) अवतार को कच्छप अवतार भी कहा गया है।

इसकी कथा निम्न प्रकार है।

एक समय की बात है महर्षि दुर्वासा ने इंद्रा को श्रीहीन का श्राप दिया। तब इन्द्र घबरा कर भगवान् विष्णु के पास पहुंचे और उनसे इस श्राप का उपाय पूछा। तब उन्होंने मंदराचल पर्वत के अमृत के बारे में बताया। यह कथा सुनकर दैत्य भी देवत्तव के साथ अमृत मंथन के लिए तैयार हो गए।

मथानी और नागराज बासुकी दोनों दल का नेतृत्व कर रहे थे। इस दौरान उन दोनों दलो ने मिलकर मंदराचल पर्वत को उठा लिया, परन्तु ज्यादा दूर तक नहीं ले जा पाए।

तब उन्होंने समुन्द्र में उस पर्वत को रखा परन्तु कोई आधार नहीं होने के कारण पर्वत डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने कूर्म अवतार ले कर आधार बनकर पर्वत को अपने पीठ पर स्थान दिया जिससे अमृत मंथन किया जा सका।

वराह अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार वराह का जन्म ब्रह्मा के नाक से हुई। बराह अवतार की कथा कुछ इस प्रकार है।

जब हिरण्याक्ष नामक दैत्य ने पृथ्वी को समुन्द्र में छिपा दिया, तब ब्रम्हा जी ने नाक से विष्णुजी के अवतार वराह उत्पन्न हुए। वराह जी ने पृथ्वी को अपनी थूथनी की सहायता से समुन्द्र से बहार निकाला और समुन्द्र को सूक्ष्म कर पृथ्वी में स्थित कर दिया।

यह देखकर दैत्यराज हिरण्याक्ष क्रोध में आ गया और भगवन वराह को युद्ध के लिए ललकारने लगा। ललकार सुनकर भगवन वराह ने हिरण्याक्ष से युद्ध किया और युद्ध कर उसे मार डाला।

नरसिंह अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार नरसिंह अवतार दैत्यराज हिरण्यकाशिपु को मारने के लिए हुआ था।

नरसिह अवतार की कथा कुछ इस प्रकार है।

दैत्यराज हिरण्यकाशिपु एक अत्याचारी राजा था। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद एक हरिभक्त था। राजा ने अपने पुत्र को बहुत समझाया और चेतावनी भी दी की वह हरिभक्ति छोड़ दे और अपने पिता को अपना भगवान मान ले। लेकिन प्रह्लाद ने इस बात से साफ़ इंकार कर दिया। तब हिरण्यकाशिपु क्रोध में आ गया और अपने पुत्र को मरवाने के लिए कई प्रयत्न किये और असफल रहा।

बार-बार इस असफल प्रयास को देखकर भगवान विष्णु क्रोध में आ गए और वह अपने भक्त को बचाने के लिए नरसिंह रूप में अवतार लिए, और हिरण्यकाशिपु को अपने जांघ पे लिटा कर उसका बद्ध किया, और अपने भक्त प्रह्लाद को उस दैत्यराज के अत्याचारों से मुक्त किया।

वामन अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार जब सतयुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बाली ने स्वर्गलोक पर अपना अधिकार कर लिया। तब सभी देवता घबराकर विष्णु जी के पास गए। तब भगवान् विष्णु ने कहा की मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हे स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय बाद उन्होंने वामन अवतार लिया।

वामन अवतार की कथा कुछ इस प्रकार है।

वामन अवतार दैत्यराज बाली के अभिमान को नष्ट करने के लिए था। जब बाली एक महा यज्ञ कर रहे थे तब, वामन वहा गए और बाली से तीन पग जमीन मांगी। तभी गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला को पहचान, बाली को यह दान देने से मन किया। लेकिन बाली नहीं माने, तब वामन ने अपना आकर बढ़ाया और एक पग में पूरी घरती और दूसरी पग में पूरा लोक समा गया, तब वो पूछे तीसरा पग कहा राखु। तब राजा ने कहा मेरे सिर पर अपना पग रखिये।

भगवान वामन ने यह बात मान लिया और उसके बाद राजा वाली सुतललोक पहुंच गए। बाली की दानवीरता देख भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह देवताओ को उनका स्वर्ग लोग मिल गया।

परशुराम अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार परशुराम जी का जन्म समस्त क्षत्रियो के विनाश के लिए हुआ था। परशुराम अवतार की दो कथाये कही गयी है, उनमे से एक कुछ इस प्रकार है।

प्राचीन काल में एक शक्तिसाली क्षत्रिय कार्तवीर्य अर्जुन ( सहस्त्रबाहु ) नामक शासक था, जो की बहुत अभिमानी था। एक बार सूर्य देव ने उन्हें कहा, की वे उन्हें भोजन करवाए, तब राजा ने कहा की आप जहा जाकर भोजन करना चाहते है वह जाकर करे पूरी धरती मेरी अधीन है। तब सूर्य देव क्रोध में आ गए और उस राज को श्राप दे दिया की पुरे क्षत्रिय समाज का विनाश हो जाये। कुछ समय बाद भगवन विष्णु ने परशुराम अवतार लिया और पुरे क्षत्रिय समाज का विनाश कर डाला।

श्री राम अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार, श्री राम का जन्म त्रेतायुग में रावण नामक राक्षसराज को मारने के लिए हुआ था।

श्री राम अवतार की कथा कुछ इस प्रकार है।

त्रेतायुग में रघुवंस नामक वंस के राजा दशरथ और माता कौसल्या ने पुत्र राम का जन्म अयोध्या में हुआ। उन्होंने कई दैत्यों का संहार किया फिर उनका विवाह सीता से हुई।
उनकी पिता की आज्ञा से उन्हें वनवास मिला इस दौरान सीता हरण रावण द्वारा कर लिया गया।

बानरराज सुग्रीव में मित्रता कर हनुमान, जामवंत, अंगद, नल, नील आदि के साथ लंका जा कर रावण से युद्ध हुआ और अंत में रावण मारा गया।

श्रीराम मर्यदापुर्षोत्तम के नाम से भी जाने जाते है।

श्री कृष्ण अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार श्र्री कृष्ण का जन्म अधर्मियों के विनाश अथवा धर्म की पुनः स्थापना के लिए हुआ था। भगवन विष्णु के एक अवतार को सर्व्श्रेस्थ यवहार भी कहा जाता है। श्री कृष्ण अवतरर की कथा कुछ इस प्रकार है।

द्वापरयुग में श्री कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ। उनके पिता का नाम वासुदेव था और माता का नाम देवकी है। वे ही अपने मामा कंस के मृत्यु के कारण बने।

पूरा संसार अभी भी उनके चमत्कारों और लीलाओ की सराहना करते है। महाभारत में वे अर्जुन के सारथि बने और पुरे जगत को गीता उपदेश दिया। महाभारत के युद्ध उपरांत घर्मराज यद्धिष्ठिर का राज्याभिषेक भी उन्ही ने किया, इस तरह फिर से उन्होंने घर्म की स्थापना की।

बुध्द अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार बौध्दधर्म के प्रवर्तक गौतम बुध्द भी भगवान विष्णु के ही अवतार है।

इनकी कथा कुछ इस प्रकार है।

गौतम बुध्द ने सत्य की खोज में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

गौतम बुध्द का जन्म एक राज्य परिवार में हुआ, और आगे चलकर उन्हें वहा का राजकुमार भी घोसित किया गया। उनका जीवन सरल तरीके से व्यतीत हो रही था।

एक दिन वह अपने राज्य में भ्रमण कर रहे थे , उन्होंने लोगो को अपार दुखो से जूझते देखा। इससे उनका मन असांत और इस सब से मुक्ति के बारे में सोंचने लगा।

सत्य की खोज के लिए वो अपना राज्य त्याग दिये। सत्य के खोज की रास्ता में उन्होंने कई कठिनाइया देखि उसका निवारण कर वे सत्य की मार्ग पर आगे बढ़ाते चले गए।

उन्हें सत्य की प्राप्ति बोध गया में हुआ, और आगे चलकर उन्होंने बौध्द धर्म की स्थापना भी किये।

कल्कि अवतार - Dasawatar

ग्रंथो के अनुसार कल्कि अवतार कलियुग के अंत में होनी है। जब कलयुग में लोग अधर्म के रास्ते पर चलते-चलते चरमसीमा पे पहुंच जायेंगे तबं सत्ययुग की पुत्र स्थापना करने के लिए भगवान् विष्णु यह अवतार लेंगे।

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