गायत्री माता सभी वेदों की जननी है। ऐसा माना जाता है कि चारो वेदों का सार गायत्री मंत्र है। इस मंत्र की आराधना स्वयं भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी करते है।
गायत्री मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
भावार्थ:- उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
इसका संसोधन महर्षि विश्वामित्र द्वारा किया गया है। यह ब्रह्म देव की निर्मिति और पत्नी है, इनका मूल रूप श्री सावित्री देवी है।
सत्य से कमाया धन हर प्रकार से सुख देता है।
छल कपट से कमाया हुआ धन दुःख ही दुःख देता है।
इस तरह न कमाओ की पाप हो जाये।
इस तरह न खर्चा करो की कर्ज हो जाय।
इस हरह न चलो की देर हो जाये। इस तरह न सोचो की चिंता हो जाये।
इस तरह न बोलो की क्लेश हो जाये। इस तरह न खाओ की मर्ज हो जाये।
सुखी जीवन के लिए आशिर्बाद जरुरी है। दुनिया का सबसे बड़ा जेबर खुद की मेहनत है। स्वार्थ में अच्छे ऐसे खो जाती है जैसे समुद्र में नदी।
देने की कोई चीज है, वो है दान।
दिखाने की कोई चीज है , वो है दया।
लेने की कोई चीज है , वो है ज्ञान।
रखने की कोई चीज है, वो है इज्जत।
छोड़ने की कोई झीज है , वो है मोह।
कहने की कोई चीज है , वो है सत्य।
खाने की कोई चीज है , वो है गम।
पिने की कोई चीज है , वो है क्रोध।
जितने की कोई चीज है, वो है प्रेम।
यह साड़ी बाते माँ गायत्री की दी हुई सीख है जो हम सभी को अपने जीवन में उतरना है।