एक दिन, शहंशाह अकबर के दरबार में एक अनोखा मुकदमा पेश हुआ जिसने सभी को हैरानी में डाल दिया। दो महिलाएं, जो दोनों शहर के बाहरी इलाके में रहती थीं, एक छोटे बच्चे के साथ दरबार में आईं और दोनों ने दावा किया कि वह बच्चा उनका है। दोनों के बीच किसी भी तरह की पहचान न होने के कारण यह निर्धारित करना मुश्किल था कि बच्चे की असली माँ कौन है।
बादशाह अकबर के सामने यह बड़ी समस्या थी कि वह इस बच्चे को किसे सौंपें। उन्होंने दरबारियों से सलाह मांगी, पर कोई भी इस पहेली को हल नहीं कर सका। तभी बीरबल दरबार में पहुंचे और अकबर ने उन्हें स्थिति के बारे में बताया।
बीरबल ने सोच-विचार के बाद जल्लाद को बुलाने के लिए कहा। जब जल्लाद आया, तो बीरबल ने प्रस्ताव रखा कि बच्चे को दो टुकड़ों में काट दिया जाए और प्रत्येक महिला को एक टुकड़ा दे दिया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई महिला इस प्रस्ताव से असहमत होती है, तो जल्लाद उस महिला को भी दो टुकड़े कर देगा।
इस प्रस्ताव को सुनकर, एक महिला ने बच्चे को विभाजित करने की सहमति दे दी, जबकि दूसरी महिला रोने लगी और याचना करने लगी कि वह बच्चे को नहीं चाहती और बच्चा दूसरी महिला को दे दिया जाए। बीरबल ने तब तत्काल फैसला किया कि बच्चे को विभाजित करने की सहमति देने वाली महिला ही असली माँ नहीं है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया।
बाद में, जब अकबर ने बीरबल से पूछा कि उन्हें कैसे पता चला कि कौन असली माँ है, तो बीरबल ने बताया कि एक सच्ची माँ अपने बच्चे को किसी भी हालत में चोट नहीं पहुंचने देगी और यही से उन्हें पता चल गया।
इस कहानी का संदेश है कि हमें कभी भी दूसरों की चीज़ों पर अधिकार नहीं जताना चाहिए और सत्य की सदैव विजय होती है। जब हम समझदारी से काम लेते हैं तो हर समस्या का समाधान निकल आता है।