माँ सरस्वती चालीसा हिंदी में। Maa Saraswati Ji Chalisa In Hindi

AuthorSmita Mahto last updated Aug 11, 2024

परिचय

श्री सरस्वती माता ब्रह्मा की पत्नी है | इन्हे साहित्य,संगीत,कला,की देवी कहा जाता है | इनका वाहन राजहंस है जो सौंदर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है |

इन्हे शारदा ,वीणापाणि,वीणावादिनी,भारती,भाग्य देवी,स्वरागनी इत्यादि के नामो से जानते है |

विद्याधारी,सर्वमंगलाधारी,सात प्रकार की स्वरागनी,नृत्य,संगीत आदि इन्ही से उत्पन्न हुई है |

पूजा एवं त्यौहार

माघ महीने की शुक्ल पक्ष में वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती माता की पूजा की जाती है | यह त्यौहार वसंत के मौसम के शुरुआत और देवी सरस्वती के जन्म दिवस के लिए मनाया जाता है | यह होली रंगीन त्यौहार की आगमन का संदेशा लाता है |

इस दिन सर्वप्रथम सरस्वती माता की प्रतिमा एवं कलश स्थापित की जाती है ,पिले वस्त्र ,श्वेत पुष्प,माला चढ़ाया जाता है | फल ,फूल ,मिष्ठान,गुलाल आदि से पूजा की जाती है और अंत में आरती की जाती है |

पूजा के एक दो दिन बाद ही माता की प्रतिमा विसर्जित की जाती है | इसमें विद्यार्थी व श्रद्धालु विशेष रूप से भाग लेते है

सरस्वती माता का जन्म

पौराणिक कथा अनुसार एक दिन ब्रह्मा ने अपने संकल्प से ब्रह्माण्ड की रचना की लेकिन वे संतुष्ट न थे ,तो उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़ककर भगवान श्री विष्णु को आवाहन किया | भगवान विष्णु उनकी स्तुति को सुनकर तुरंत प्रकट हुए उनकी समस्या जानकार आदिशक्ति को आव्हान किया | आदिशक्ति प्रकट हुई और ब्रह्मा एवं विष्णु के निवेदन से अपने ही अंश से स्वेतवर्णा एवं प्रचंड तेज उत्पन्न किया जो ब्रह्मा की पत्नी सरस्वती बनी | इनके प्रकट होते ही मनो पृथ्वी पर जीवन आ गया | मानव में पशु से ज्ञानी मनुष्य होने की प्राप्ति हुई |

♦Saraswati Chalisa in Hindi♦

♦दोहा♦

जनक जननि पद्मरज, निज मस्तक पर धरि।
बन्दौं मातु सरस्वती, बुद्धि बल दे दातारि॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव, महिमा अमित अनंतु।
दुष्टजनों के पाप को, मातु तु ही अब हन्तु॥

♦चौपाई♦

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी॥

जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी॥

रूप चतुर्भुज धारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता॥

जग में पाप बुद्धि जब होती।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति॥

तब ही मातु का निज अवतारी।
पाप हीन करती महतारी॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा।
तव प्रसाद जानै संसारा॥

रामचरित जो रचे बनाई।
आदि कवि की पदवी पाई॥

कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना।
भये और जो ज्ञानी नाना॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपकी अम्बा॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी॥

पुत्र करहिं अपराध बहूता।
तेहि न धरई चित माता॥

राखु लाज जननि अब मेरी।
विनय करउं भांति बहु तेरी॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा।
कृपा करउ जय जय जगदंबा॥

मधु-कैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना॥

समर हजार पांच में घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता।
क्षण महु संहारे उन माता॥

रक्त बीज से समरथ पापी।
सुरमुनि हृदय धरा सब कांपी॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा।
बार-बार बिन वउं जगदंबा॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभ-निशुंभा।
क्षण में बांधे ताहि तू अम्बा॥

भरत-मातु बुद्धि फेरेऊ जाई।
रामचन्द्र बनवास कराई॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा॥

को समरथ तव यश गुन गाना।
निगम अनादि अनंत बखाना॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी।
नाम अपार है दानव भक्षी॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता॥

नृप कोपित को मारन चाहे।
कानन में घेरे मृग नाहे॥

सागर मध्य पोत के भंजे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में॥

नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमें करई न कोई॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई॥

करै पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा।
निकट न आवै ताहि कलेशा॥

बंदी पाठ करें सत बारा।
बंदी पाश दूर हो सारा॥

रामसागर बांधि हेतु भवानी।
कीजै कृपा दास निज जानी॥

♦दोहा♦

मातु सूर्य कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु, परूं न मैं भव कूप॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को, आश्रय तू ही देदातु॥

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